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रेत पर घर बनाने जैसी है हमारी जिंदगी। Reet Par Ghar Jaisi Hai Jindagi। Radha Soami Babaji Ki Saakhiyan

Radha Soami Babaji Ki Saakhi Dera Beas

Radha Soami Hindi Saakhian

 रेत पर घर बनाने जैसी है हमारी जिंदगी 

रात के दस बजे का समय है। मां अपने बच्चों, पप्पू और पिंकी से कहती हैं– ‘बेटा, सोने का समय हो रहा है | चलो उठो, कमरे में जाकर चुपचाप सो जाओ | मां के कहने पर बच्चे कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट जाते हैं और लेटने के दो मिनट बाद ही पप्पू और पिंकी में झगड़ा शुरू हो जाता है मां उनका शोरगुल सुनकर कमरे में पहुँचती हैं और पूछती है ‘क्या हुआ ? क्यों झगड़ते हों ? मैंने सोने को कहा था या झगड़ने को ?’ तो पप्पू कहता है – ‘मम्मी ! यह तकिया में लूंगा |’ तभी पिंकी कहती है ‘नहीं मम्मी! यह तकिया में लुंगी तकिया एक है और उसको चाहने वाले दो पप्पू कहता है की ‘में लूंगा | यह तकिया में किसी भी हालत में नहीं दूंगा’, 

तो पिंकी कहती है की ‘में इसको लेकर ही रहूंगी |’ मां कहती है – ‘झगड़ो मत ! में एक तकिया और देती हूँ’ और मां एक और तकिया लेकर देती हैं | झगड़ा खत्म हो जाता है लेकिन दो मिनट बाद ही फिर दूसरा झगड़ा शुरू हो जाता है | मां फिर पूछती है -‘अब क्यों झगड़ते हों ?’ तो पप्पू कहता है की – ‘मम्मी! यह यह चादर मुझे नहीं देती है इसे अपनी तरफ खींचती है |’ तो पिंकी कहती है की – ‘मम्मी! मम्मी! भैया यह चादर मुझे नहीं ओढने देता है |’ मां कहती है – ‘अभी तकिया को लेकर झगड़ते थे | अब चादर को लेकर झगड़ने लगे | खेर, कोई बात नहीं | में एक चादर और लेकर देती हूँ अब दोनों को अपना-अपना तकिया, अपनी-अपनी चादर मिल चुकी थी और आधे घंटे के बाद पप्पू को नींद आ जाती है, उधर पिंकी को भी नींद आ जाती है | दोनों सो रहे है | इसकी टांग उसके ऊपर, उसकी टांग इसके ऊपर | इसकी चादर उसके सिर पर और उसकी चादर इसके ऊपर है | इसका तकिया उधर पड़ा है, उसका तकिया इधर पड़ा है। 

 मां जब यह नजारा देखती है, तो हंसती है और सोचती है की कैसे नादान बच्चे हैं ? तकिया और चादर को लेकर लड़-झगड़ रहे थे | अब वही तकिए, चादर इधर-उधर पड़े हैं और इहें उनका ख्याल ही नहीं है ठीक यहीं बात हमारे जीवन पर भी लागु होती है | हम भी अपने जीवन छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते हैं, ईष्या करते हैं | इस कहानी में – मां हंसती है बच्चों पर और मौत हंसती है हम पर | मौत हमारी मूर्खता पर हंसती है, क्योंकि जब हमारी आँखें सदा-सदा के लिए मुंड जाती हैं, तो हमारे मकान, हवेलियां, तिजोरियां, जमीं-जायदाद सब ज्यों के त्यों पड़े रह जाते हैं | मकान वहीँ खड़ा है | दूकान वहीँ खड़ी है | तिजोरी भी वहीँ पड़ी है | ठीक वैसे ही जैसे पप्पू और पिंकी के आसपास तकिया और चादर पड़े थे |

मां हंसती है बच्चों पर और मौत हंसती है हम पर, की कैसा नादान बच्चा था? जिंदगी भर मिटटी (धातु) के ठीकरों और चंद रंग-बिरंगे कागजी टुकड़ों के लिए भागता रहा | ध्यान रहे! अपने मरने के बाद हमें शमशान तक पहुँचाने के लिए तो हमारे साथ सारी दुनिया हो ले, लेकिन शमशान के आगे साथ जाने वाला पूरे जहाँ में एक भी नहीं होगा |

Radha soami sangat ji

apko ye babaji ki hindi saakhi kaisi lagi comments me jrur btayen ji

aur bhi babaji ki saakhiyan padhne ke liye is website ko save kren ji



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