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बाबाजी की साखी- भक्त की परीक्षा। Radha Soami Sakhi Dera Beas

 Radha Soami Babaji Ki Saakhi Dera Beas Hindi 2021

भक्त की परीक्षा 

 

सादा-जीवन और उच्च विचार रखने वाले, संत कबीर दास जी की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। बनारस के राजा बीर सिंह भी, कबीर दास जी के भक्तों में से एक थे। जब कभी संत कबीर दास जी राजा बीर सिहं से मिलने जाते, तो राजा स्वयं कबीर दास जी के चरणों में बैठ जाते और उन्हें अपनी राज-गद्दी पर बैठा देते थे। 

एक दिन संत कबीर दास जी ने सोचा की, राजा बीर सिंह की परीक्षा ली जाए। क्या वो सचमुच इतने बड़े भक्त हैं? जितना कि उनके व्यवहार से नज़र आते है या यह एक मात्र दिखावा है। अगले दिन वेह बनारस के बाज़ार में एक मोची और एक महिला भक्त, जो कि पहले वेश्या थी। उस के साथ राम नाम जपते हुये, निकल पड़े और साथ ही उन्होंने अपने हाथ में दो बोतलें पकड़ लीं। जिस मे रंगीन पानी भरा हुया था, पर देखने मै वह शराब प्रतीत हो रही थी। 

संत कबीर दास जी को ऐसा करने पर उनकी निन्दा करने वालो को, उन पर ऊँगली उठाने का मौका मिल गया ओर शहर भर में उनका विरोध होने लगा। शराब की बोतलें हाथ में लिये ओर इस तरह शहर में घूमने की खबर अब राजा तक भी पहुंच गई। कुछ समय बाद संत कबीर दास जी ओर उनके दो साथी अपनी योजना के अनुसार राज-दरबार पहुंच गये। 

उनके इस व्यवहार से राजा पहले से ही मन ही मन नाराज थे और इस बार वह संत कबीर दास जी को देख कर अपनी गद्दी से नहीं उठे। कबीर साहिब जी तुरंत समझ गए, कि राजा भी आम लोगों की तरह ही हैं। उन्होंने तुरंत दोनों बोतलें जमीन पर पटक दीं, उन्हें ऐसा करते देख राजा ने मन ही मन सोचा। एक शराबी कभी भी इस तरह से शराब की बोतल नहीं फेंक सकता, जरूर बोतलों में कुछ और है? 

राजा तुरंत उठा और संत कबीर दास जी के साथ आये मोची को, एक किनारे करके उस से पुछता है। ”ये सब क्या है?” मोची बोला, ”अरे महाराज! आप को नहीं पता, जगन्नाथ मंदिर में आग लगी हुई है और संत कबीर दास जी इन बोतलों के पानी से वो आग बुझा रहे है।” राजा ने इस घटना का दिन और समय नोट कर लिया और बाद में इस बात की सच्चाई का पता लगाने के लिए एक दूत जगन्नाथ मंदिर भेजा। 

मंदिर के आस-पास रहने वाले लोगों ने इस बात की पुष्टि की, उसी दिन और समय में मंदिर में आग लगी थी ओर जिसे बुझा दिया गया था। जब राजा को इस सच्चाई का पता चला तो उन्हें अपने व्यवहार पर पछतावा हुआ और संत कबीर दास जी के प्रती उनका विश्वास और भी दृढ हो गया। 

क्या हमें भी अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास है, हमे तो थोड़ा सा दुख या तकलीफ आ जाए तो हम घबरा जाते हैं। अगर हम अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास नहीं बना सकते, तो हमें गुरु धारण करना ही नही चाहिए था। जो अपने गुरु को एक आम आदमी समझते हैं, वह एक बहुत बड़ी गलत-फहमी के शिकार हैं। क्योंकि वही लोग ही अपने गुरु पर दृढ़ विश्वास नहीं कर पाते, वह गुरु को एक आम इंसान ही समझते हैं। 

हमें कभी भी अपने गुरु को एक आम इंसान समझने की गलती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि गुरु उस कुल मालिक, रब, भगवान, द्वारा भेजा एक दूत है, फरीशता है। जो इंसानी जामा लेकर इस सृष्टि मे हमे समझाने आता है, अगर हम उसको अपने जैसा समझ बैठे। तो हम उसे कुल मालिक का दर्जा कभी नहीं दे सकते ओर ना ही उनसे शिक्षा प्राप्त कर सकते है। इसलिए हमें अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास रखते हुए, जो उन्होंने हमें युक्ति समझाई है। 

उस युक्ती द्वारा हमें भजन सुमिरन पक्का करना चाहिए, जब हम अपना भजन सिमरन पक्का कर लेंगे तभी तो हमें वह मंजिल मिलेगी। इस मंजिल को पाने के लिए हमें सोझी ओर मदद हमारे गुरु से ही मिलेगी। हमारे गुरु ने हमें रास्ता दिखा कर, हमें उस मंजिल तक पहुंचाया है। इस लिए हमें गुरु का सदा शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिस गुरु ने हमे वह शिक्षा दी है। यह शिक्षा हमें दुसरा ओर कोई भी नहीं दे सकता है। वह हमे यह समझाते है कि हमे किस प्रकार इस संसार को छोड़ कर, भजन सिमरन द्वारा उस कुल मालिक के साथ जा मिलना है।


जिह सिमरत गति पाइए
     तिह भज रे तै मीत,
कह नानक सुन रे मना
     अउध घटत है नीत ।।

Radha Soami ji sangat ji

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