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Saakhi- पश्चाताप | Julahe Ki Kahani | Radha Soami Babaji Ki Sakhi Dera Beas

Radha Soami Babaji ki Sakhi Dera Beas 2021

Saakhi- पश्चाताप


एक नगर में एक जुलाहा रहता था, वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था, एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वह सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे, कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता? उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वह वहां पहुंच कर बोला, यह साड़ी कितने की दोगे? जुलाहे ने कहा दस रुपये की। 

तब लडके ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिये और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला। मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, मुझे तो यह आधी साढी़ ही चाहिए। इस का क्या दाम लोगे? 

जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा पाँच रुपये, लडके ने उस टुकड़े के भी और दो भाग किये और फिर दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत था, उसने बताया ढाई रुपये। लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया, अंत में वह बोला अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किसी काम के नही? जुलाहे ने शांत भाव से कहा बेटे! अब यह साढी़ के टुकड़े तुम्हारे ही नही, किसी ओर के भी काम के नहीं रहे। 

अब लडके को शर्म आई और कहने लगा, मैंने आपका जो नुकसान किया है अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ। जुलाहे ने कहा कि जब आपने मुझ से साड़ी ली ही नहीं, तो मैं आप से पैसे कैसे ले सकता हूँ? यह सुन कर लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा कि मैं बहुत अमीर आदमी का बेटा हूँ ओर आप एक गरीब आदमी हो।

 अगर मैं आपको रुपये दे दूँगा, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर आप यह घाटा कैसे सहोगे? नुकसान मैंने किया है, तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए। वह जुलाहा मुस्कुराते हुए कहने लगा, तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो किसान का कितना श्रम लगा, तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत कता, फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल होती, जब इसे कोई पहनता ओर इस का उपयोग करता इस से लाभ उठाता। पर तुम ने तो इस साड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर डाले, इसका रुपयो से यह घाटा कैसे पूरा होगा?

जुलाहे की अवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी ओर लड़का शर्म से पानी पानी हो गया। उसकी आँखे भर आई और वह संत जी के पैरो में गिर पडा़। 

तब जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठा कर, उसकी पीठ को थप-थपाते हुए कहा। बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपये ले भी लेता, तो उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता, जो उस साड़ी का हुआ है। साड़ी एक गई है, मैं दूसरी बना दूँगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई, तो दूसरी जिन्दगी कहाँ से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है, मुझे तुमसे और कुछ नहीं चाहिए। 

*सीख - संत जी की उँची सोच ओर समझ ने लडके का जीवन बदल दिया, ये कोई और नहीं ये सन्त कबीर साहिब थे। हमारा भी हाल कुछ उस लड़के की तरह ही है, हमारा मन भी उस लड़के की तरह घमंडी हो गया है। यह मन उस लड़के की तरह ही हर एक को परखता रहता है और उस रास्ते को भूल गया है। जिस रास्ते पर हमें चल कर उस प्रभु को याद करते हुए, भजन सुमिरन करना है ओर उस कुल मालिक को याद करके उस निज घर पहुंचना है। हमे हमारे सतगुरु ने नाम बक्ष रखा है, पर हम फिर भी उसका निरंतर जाप नहीं करते। हमें अपने मन को काबू में रखकर, इससे भजन सिमरन करवाना चाहिए। ताकि जिस कार्य के लिए हम इस संसार मै आए हैं, वह कार्य हमारा पूर्ण हो सके। इसलिए कुल मालिक को हर रोज याद करो, मन को अच्छे रास्ते पर लाकर इस से सिमरन करवाओ। जब तक यह मन अच्छे रास्ते पर नहीं चलेगा, तब तक हम आध्यात्मिक कमाई में आगे नहीं बढ़ सकते। इस लिए हमें अपने मन मै पश्चाताप की भावना रखते हुए इस संसार में रहते हुए आगे बढ़ते रहना है। पश्चाताप से हमारे मन में निम्रता आएगी और यह झुकना सीखेगा, जब यह झुकना सीख गया तो यह अपने आप ही परमार्थ के रास्ते पर आगे बढ़ता जाएगा और हमारा सच्चा मित्र बन जाएगा। जब मन हमारा मित्र बन गया, तो फिर हमें किसी से डरने की क्या जरूरत है। फिर हम उस मुकाम को आसानी से हासिल कर सकते हैं, जिसके लिए हमें यह मनुष्य जामा मिला है।*



जब लग तेल दीवे मुख बाती, तब सूझे सब कोइ

तेल जले बाती ठहरानी, सूना मंदर होई ।।


*जब तक दीये में तेल है और बाती जल रही है तब तक उजाला है। अर्थात जब तक स्वास है और आत्मा शरीर मे है तब तक सब कुछ अपना है। जब तेल खत्म हो जाता है और बाती जलना बंद करदे, तो खाली दीया रह जाता है। अर्थात जब स्वास खत्म और आत्मा शरीर से निकल गई, तो सूना शरीर रह जाता है।* 



Radha Soami Sangat ji

Apko ye babaji ki sakhi kaisi lagi hamein jrur btayen ji

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