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Hak Halaal Ki Kmai | Radha Soami Babaji Ki Sakhi Dera Beas 2021

Radha Soami Babaji Ki Sakhi Dera beas in Hindi 2021

Saakhi - Hak Halaal Ki Kmai

 🌺☘🎋 हक हलाल की कमाई 🎋☘🌺


बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से अछी साँठ-गाँठ हो गयी थी। स्टेशन मास्टर से सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगे थे। सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है, तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।

 एक दिन उस ने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित करके, भोजन प्रसाद ग्रहण करने के लिए प्रार्थना की। साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी, दोपहर का समय था तो सेठ ने साधु महाराज से कहा। "महाराज! अभी आप थोडा़ आराम कर लीजिए, बाहर थोड़ी धूप कम हो जाने पर आप चले जाना। साधु बाबा ने सेठ की बात स्वीकार कर ली ओर एक कमरे मै आराम करने पहुंच गये।

 सेठ ने 100-100 रूपये वाले नोटो की गड्डियाँ बना कर, 10 लाख की रकम उसी कमरे में चादर से ढक कर रखी थी जहां साधु बाबा आराम कर रहे थे। खैर अब खीर थोड़ी हजम हुई थी, कि साधु बाबा के मन में खयाल आया कि इतनी सारी रूपयों की गड्डियाँ पड़ी हैं। एक-दो रूपयों की गड्डियाँ उठा कर मै झोले में रख लूँ, तो किसी को क्या पता चलेगा? 

इस ही सोच के साथ साधु बाबा ने, नोटो की एक गड्डी उठा कर अपने झोले मै रख ली। शाम के वक्त साधु बाबा ने सेठ को आशीर्वाद दिया ओर अपने देकर चल पड़े। जब सेठ दूसरे दिन रूपयों को गिनने बैठा, तो एक गड्डी रुपयों की कम निकली। सेठ ने सोचा की साधु महात्मा तो भगवत पुरुष थे, वे क्यों मेरे रूपयों को लेंगे? इस बात के लिए सेठ ने नौकरों की धुलाई ओर पिटाई चालू कर दी ओर ऐसा करते हुए दोपहर हो गयी । 

इतने में साधु बाबा सेठ के घर आ पहुँचे, तथा अपने झोले में से एक गड्डी रूपयो की निकाल कर सेठ को देते हुए बोले। सेठ जी "नौकरों को मत पीटना, रुपयों की एक गड्डी मैं ले गया था।" सेठ ने हैरानी से कहाः "महाराज! आप क्यों लेंगे? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई होगी, तब कोई भय के मारे आप को रुपयो की गड्डी दे गया होगा। और आप उस नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही, यहां रुपए वापिस करने आये हैं। क्योंकि साधु तो दयालु होते है," साधुः बोला यह दयालुता नहीं है। मैं सचमुच तुम्हारी रुपयों की एक गड्डी चुराकर ले गया था। 

साधु ने कहा, सेठ! तुम मुझे सच बताओ कि तुम ने कल खीर किसे और किस लिए बनायी थी?" सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर बनी थी। साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी, इस लिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खिलाई खीर का सफाया हो गया। तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि 'हे राम.. यह क्या हो गया?* 

मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी, इस लिए मै तेरे पैसे लौटाने आ गया। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है, *कि हमें भी नेक कमाई कमानी चाहिए और उसी के ऊपर गुजारा करना चाहिए ताकि हमारा मन शुद्ध रहे। जितना हम अपने मन को शुद्ध रखेंगे, उतनी ही जल्दी परमात्मा का निवास हमारे मन में हो पाएगे ओर तभी हमारा भजन सिमरन मै बैठना आसान हो पायेगा। 

अगर हम हक हलाल की कमाई नही कमाते हैं, तो हमारा मन भी वैसी ही गंदगी से भरा रहेगा ओर यह मैला हो जायेगा। मैले बर्तन में मालिक कोई भी चीज नहीं डालते, क्योंकि अगर कोई चीज गंदे बर्तन में डाल दी जाएगी। तो वह भी गंदगी का ही हिस्सा बन जाएगी, इस लिये जब तक हम हक हलाल की कमाई नही करते, तब तक हमारे लिए उस मालिक को अपने हृदय मै वसाना असंभव है। 

सभी धार्मिक स्थानों पर हमें, हक हलाल की कमाई करने की ही शिक्षा दी जाती है। क्योंकि जो रूहानी दांत संतो महात्माओं ने हमें देनी है, वह साफ बर्तन में ही दे सकते हैं। अगर वह मैंले और गंदे बर्तन में हमे अपनी रूहानी दात दे देंगे, तो वह गंदगी का ही हिस्सा बन जाएगी। इस लिए संत महात्मा हमें रुहानी मार्ग पर चलते हुए, हक हलाल की कमाई करने पर ही जोर देते हैं। और हमें यह समझाते हैं कि इस रूहानी पथ पर चलते हुए, हमें अपने जीवन को यापन करने के लिए हक हलाल का रास्ता ही अपनाना है। तभी हम उस कुल मालिक के साथ रिश्ता पक्का कर पाएंगे, इस लिए हमे हक हलाल की कमाई करनी चाहिए। "इसी लिए कहते हैं कि....* जैसा खाओ अन्न ... वैसा होवे मन। जैसा पीओ पानी .... वैसी होवे वाणी।।

दो रोज आप मेरे पास रहो !!!!

दो रोज मै आपके पास रहूँ सतगुरू जी…!!!!

चार दिन की जिदंगी है…!!!!

ना आप मुझसे दूर रहो…

ओर ना मै आप से दूर रहूँ…!!!!!


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Radha soami sangat ji , kaisi lgi apko ye saakhi.

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