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काल के 4 पत्र। Kaal Ke 4 patra। Radha Soami Babaji Ki Saakhi In Hindi

Radha Soami Babaji Ki Saakhi Dera Beas 2021 hindi sakhi

Saakhi-  काल के 4 पत्र  

एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था। एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को अपना मित्र बना लिया। उससे कहा - मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो। काल ने कहा - सृष्टि नाटक का यह शाश्वत नियम है इस लिए मैं मजबूर हूँ। आप मेरे मित्र है मैं आपकी जितनी सेवा कर सकता हूँ करूँगा ही, आप मुझ से क्या आशा रखते है बताइये। चतुर व्यक्ति ने कहा - मैं इतना ही चाहता हूँ कि आप मुझे लेने पधारने के कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल - बच्चो को कारोबार की सभी बाते अच्छी तरह से समझा दूँ और स्वयं भी भगवान के भजन में लग जाऊँ। 
 
काल ने प्रेम से कहा - यह कौन सी बड़ी बात है मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूँगा। मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊँगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। 
 
काल अपने दूतों सहित उस चतुर व्यक्ति के समीप आकर कहने लगा - आपके नाम का वारंट मेरे पास है मित्र चलिए, मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहाँ नहीं छोड़ूँगा। मनुष्य के माथे पर बल पड़ गये, भृकुटी तन गयी और कहने लगा धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर, मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ? तुमने मुझे वचन दिया था कि लेने आने से पहले पत्र लिखूँगा। मुझे बड़ा दुःख है कि तुम बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए। मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया 
 
काल हँसा और बोला - मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो। मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजें। आपने एक भी उत्तर नहीं दिया। मनुष्य ने चौक कर पूछा - कौन से पत्र ? कोई प्रमाण है ? मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ। काल ने कहा - मित्र, घबराओ नहीं। मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद है।
 
 मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफ़ेद कर दिया और यह भी कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो। नाम, बड़ाई और धन - संग्रह के झंझटो को छोड़कर भजन में लग जाओ पर मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए। आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए है। 
 
कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा। नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी। फिर भी आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे। दो मिनिट भी संसार की ओर से आँखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान, मन में नहीं किया। इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा। 
 
इस पत्र ने आपके दाँतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया। और अपने इस पत्र का भी जवाब न देखकर और ही नकली दाँत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे। मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बात एक नया, बनावटी रास्ता अपनाने को तैयार रहता है। 
 
अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग - क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया जब मनुष्य ने काल के भेजे हुए पत्रों को समझा तो फुट -फुट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा। उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा, मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूँगा। अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊँगा, पर वह कल नहीं आया। काल ने कहा - आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग -रंग, स्वार्थ और भोगों के लिए किया। जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को तोड़ना जो करता है, वह अक्षम्य है।
 मनुष्य को जब बातों से काम बनते हुए नज़र नहीं आया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया काल ने हँसकर कहा - यह मेरे लिए धूल है। लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है , मुझे नहीं। यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते। काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय -हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।
सीख - समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु की याद में रहने का अभ्यास करना चाहिए और अभी तो कलयुग का अन्तिम समय है इस में तो हर एक को चाहे छोटा हो या बड़ा सब को प्रभु की याद में रहकर ही कर्म करने है।
 
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