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सच्चा प्रेम। Sachha Prem। Radha Soami Sakhi


सच्चा प्रेमी
काफी पुरानी बात उन दिनों की है जब हुज़ूर महाराज चरण सिंह जी हिमाचल में सत्संग कर रहे थे।
हुज़ूर माहराज के समय गुरुप्यारी साध संगत को सत्संग के बाद स्टेज के पास दर्शन देनें की परंपरा थी।
हुजूर सत्संग पश्च्यात स्टेज की गुरु गद्दी पे विराजित होते और संगत लाईन लगा के हुज़ूर माहराज के दर्शनों से अपनी प्यास बुझाती थी दर्शनों पश्च्यात प्रसाद भी दिया जाता था। सत्संग के आखरी दिन जब सारी संगत हुज़ूर माहराज चरण सिंह जी के दर्शनों से अपनी प्यास बुझा चुकी तो हुज़ूर स्टेज ( गुरुगद्दी ) से निचे नही उतरे। 
समीप खड़े सेवादारों और हज़ारों की तादात में उत्सुक खड़ी संगत को भी बड़ा अचरज हुवा पुरे पांडाल में सन्नाटा छा गया लोग एक दूसरे की तरफ आश्चर्य से देखनें लगे। 
किस की मज़ाल जो हुज़ूर से बैठनें का कारण पूछ सके हुज़ूर के चेहरे पे बहुत ही भोली और प्यारी सी मीठी सी मुस्कान बनी हुई थी संगत तो जैसे जड़ हो चुकी थी। डरते डरते एक बहुत बुज़ुर्ग सेवादार नें हाथ जोड़ के हुज़ूर माहराज जी से विनती वाले अंदाज़ में पूछा की हुज़ूर आज बैठनें का कारण..??
हुज़ूर बहुत ही प्यार भरी मुस्कान लुटाते हुवे बोले की भाई..वो जो 13 न. का पांडाल में खम्बा है वहां एक मेरा सच्चा प्रेमी बैठा है.. उसके पास जाओ और प्रेम से कहना की हुज़ूर ने तुम्हे अपनें दर्शनों के लिये भेंटां के साथ बुलवाया है ..?? 
सेवादार फ़ौरन 13 न. खम्बे के पास पहुंचे व अकेले उदास बैठे गरीब सत्संगी से हाथ जोड़ के विनती करी और बोले चलिये आपको हुज़ूर माहराज जी ने खुद दर्शनों के लिये दसवंद भेंटां के साथ बुलवाया है।  गुरु का प्यारा और दुलारा सत्संगी हाथ जोड़ के हुज़ूर के चरणों के समीप खड़ा होके आंखों से गंगा यमुना बहाने लगा दर्शनों के बाद इस विशेष सत्संगी की आंखों से आंसूं रुकनें का नाम ही नही ले रहे थे। 
हुज़ूर ने बड़े प्यार से निहाल कर देनें वाली नज़र उस सत्संगी पे डाली और शांत बैठे रहे।  जिग्यासु सत्संगियों से रहा नही गया और हुज़ूर से हाथ जोड़ के विनती वाले अंदाज़ में पूछा की हुज़ूर संगत तो हम भी हैं आपकी फिर हममें और इस सत्संगी भाई में क्या फर्क है जिसके लिये आप रुके रहे और आपनें आज्ञा दे के इस सत्संगी भाई को अपनें पास बुलाया इस राज से पर्दा उठाइये हुज़ूर..?? 

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■◆●■◆●  संगत की प्यार भरी विनती से हुजूर मुस्कराये और बोले की ये सत्संगी इतना प्यारा क्यों है ..??  
तो सुनों..ये मेरा सत्संगी बहुत ही 'दिन' और 'गरीब' है ये एक साल से पाई - पाई पैसा जोड़ रहा था, सत्संग में आनें के लिये, पर इसके पास सिर्फ इतना ही पैसा इकट्ठा हुवा, जितना इसके गांव से सत्संग में आनें का किराया,
लेकिन भेंटां ( दानपात्र ) में देने के लिये और पैसा नही था तो ....  इस गुरु के प्यारे ने, जो बस के किराये के लिये पैसे ,पाई पाई करके जोड़े थे ,वो दसवंद ( दानपात्र ) के लिये रख लिये ,( क्योंकि इसके पास और पैसा नही था ) और सत्संग में आनें के लिये 10 दिनों तक पैदल चल केयहां पहुंचा है..
 ताकि ये किराए के लिये कट्ठा किया पैसा गुरु की गोलख में डाल सकुं ..और दर्शनों को इसलिये नही आया की दसवंद में डालनें की रकम बहुत थोड़ी थी और इसे लज्जा ,शर्म आ रही थी की मेरा गुरु को क्या मुंह दिखाऊं अब बताओ ये मेरा प्यारा सत्संगी हुवा के नही..??
ये व्यथा सुन के सभी सेवादार और सत्संगियों की आंखों से आंसुओं की धाराएं बहनें लगी, और उस गुरु के प्यारे सत्संगी को सभी सेवादारों और सत्संगियों ने बहुत आदर ,मान, और इज्ज़त दी।
।।लख खुशियां पातशाहियां।
।।।जे सतगुरु नदर करे।।


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