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Saakhi - बिछुड़ी हुई आत्माएं | Radha Soami Babaji Ki Saakhi Dera Beas

Radha Soami Babaji ki Sakhi Dera Beas 2021

Saakhi - बिछुड़ी हुई आत्माएं

जीसस की कहानी मै जिक्र है, एक बाप के दो बेटे थे ओर उनका बाप बड़ा धनी था। एक बेटा उपने बाप का आज्ञाकारी था और एक बेटा अपने बाप का बड़ा विद्रोही था। एक बेटा कमाई को बढ़ाता था तो दुसरा बेटा बाप की कमाई को घटाता था। अंततः उसके पास इन दोनों बेटों को अलग कर देने के सिवाय कोई ओर उपाय ना रहा। उस ने धन-दौलत, जमीन-जाये दाद, घर-बार सब कुछ दोनो बेटो मैं बरावर बांट दिया। बड़ा बेटा बाप के पास ही रुक गया ओर उस ने अपने धन को व्यवसाय में लगा कर खेत खरीदे फिर उसके बगीचे बनाए। छोटा बेटा धन मिलते ही, गांव से नदारद (बाहर) हो गया। थोड़े दिनों बाद खबरें आने लगीं कि, जुए में उस ने सब बरबाद कर दिया है। उस ने शराब पी डाली, वेश्याओं के नाच-गाने में जो भी मिला था वह सब मिट्टी हो गया। छोटा बेटा घर छोड़ कर चला गया था, जो अब जुआरी ओर शराबी हो गया था। बाप ने उस बेटे को खबर भेजी, कि घर वापस लौट आओ। पर उसे भरोसा ना हुया कि मेरे सब बरबाद कर देने पर भी, मेरा बाप मुझे वापिस बुला सकता है। प्रेम भरोसे योग्य है भी नहीं और जब कभी प्रेम घटता है तो तुम्हें भी भरोसा ना आएगा। प्रेम ऐसा अनहोना है, कि कहां दिखाई पड़ता है। लड़के को भी भरोसा नहीं आया कि उसका बाप उसे वापिस घर बुला रहा है। लेकिन अब वह दीन हो गया था, भीख मांगता था। उस ने सोचा की घर लौट चलता हु, भीख मांगने से तो अछा है ओर मै घर के एक कोने में पड़ा रहूंगा। बेटे के आगमन की खबर आई, तो बाप ने खुशी से एक बड़ा उत्सव समारोह रखा। बाप ने मिठाई और भोजन तैयार करवाए ओर सारे गांव को भोजन पर आमंत्रित किया। बड़ा बेटा जब काम कर के खेतो से घर बापिस लौट रहा था, तब गांव के कुछ लोगों ने उससे कहा कि हद्द हो गई। यह तुम्हारा दुर्भाग्य है कि तुम यहां घर में हो, बाप की सेवा भी करते हो ओर अपना कमा कर इतनी मेहनत करते हो। लेकिन तुम्हारे स्वागत में कभी इस तरह कालीन नहीं बिछाए गए, ना ही तुम्हारे स्वागत में कभी बैंड-बाजे बजे। और ना ही तुम्हारे लिए, कभी भोज-उत्सव हुआ। वह आवारा लड़का तुम्हारा छोटा भाई, सब बरबाद कर के वापिस घर लौट रहा है। तुम्हारे घर पर उस के स्वागत का इंतजाम हो रहा है, जाओ! तुम भी स्वागत में सम्मिलित हो। घर मै घी के दीए जलाए गए हैं, बैंड-बाजे बज रहे हैं ओर मेहमान इकट्ठे हो रहे हैं। तम्हारा बाप गांव के द्वार पर, अपने आवारा बेटे की प्रतीक्षा कर रहा है। यह सुन कर बड़े बेटे को भी दुख हुआ, उसे अन्दर चोट भी लगी। वह घर जाकर उदास बैठ गया और जब बाप छोटे बेटे को जो घर से भाग गया था। उसे लेकर वापिस लौटा, तो बड़े बेटे को उदास पाकर उस ने पूछा। कि तू उदास क्यों है बेटा? उस बड़े बेटे ने कहा, पिता जी उदासी स्वाभाविक है, मेरा कभी कोई स्वागत नहीं हुया। मैं आप की सेवा कर रहा हूं, मैं आप के लिए धन कमा रहा हूं। आप ने मुझे जितना धन दिया है, उस धन से चार गुना मैंने कर दिया है। और यह आवारा सब बरबाद कर के लौट आया है, तब भी आप इस का स्वागत धूम धाम से कर रहे हो। तो बाप ने अपने बड़े बेटे को कुछ बातें कहीं, जो समझने योग्य हैं। बाप ने कहा *बेटा प्रेम कमाने वाले में और गैर कमाने वाले में फर्क नहीं करता। प्रेम अंधा होता है और प्रेम जो निकट है उस के प्रति तो आश्वस्त है। जो दूर चला गया है, उसे पास लाने की कोशिश करता है। और तुम मेरे पास ओर ठीक ठाक हो, इस लिए तुम्हारे लिए किसी विशेष उत्सव रखने की मुझे जरूरत ही नहीं पडी़।* तुम्हारे लिए तो मेरे आशीर्वाद प्रति पल चल रहे हैं, लेकिन जो भटक गया है। उस के लिए विशेष आयोजन की जरूरत है, तभी वह आश्वस्त हो सकेगा। जीसस कहते थे, कि ठीक वैसे ही जैसे कोई गडरिया सांझ को घर लौटता हो अपनी भेड़ों को लेकर। और *अचानक वह पाता है, कि उसकी एक भेड़ खो गई है। तो वह हजार भेड़ों को वहीं जंगल के अंधेरे में छोड़ कर, उस एक भेड़ को खोजने निकल जाता है। वह हजार की चिंता नहीं करता, कि इनका क्या होगा? लेकिन जो एक भटक गई है, उसे लेने निकल जाता है। और जब वह एक भेड़ उसे मिल जाती है, तो भटकी हुई उस भेड़ को वह अपने कंधे पर रखकर वापिस लौटता है।* जीसस कहते थे कि, प्रेम महत्वा कांक्षी नहीं है, यही बात मैं तुम से कहता हूं, प्रेम की कोई मांग नहीं है। *हमारा असली बाप वह परमात्मा भी, कुछ ऐसे ही हम बिछड़ी हुई आत्माओं को ऐसे प्रेम पूर्वक रास्ता दिखाते हैं। जो रूहे रुहानी मार्ग से भटक जाती हैं, या बिछड़ जाती है। उनको अपने साथ अपने सच्चे घर ले जाने के लिए वह भगवान, मनुष्य के बीच में एक गुरु को भेजता है। वह गुरु भटकी हुई आत्माओं को, नाम का दान बक्श कर उन को सही रास्ता बताते हैं। गुरु उन भटके हुए लोगो को रास्ते पर ले आते हैं और उन्हें समझाते हैं कि हमारा असली घर कहां है। जो भटके हुए जीव, अपने गुरू का हुकुम मान कर सही रास्ते पर चलते हुए भजन सिमरन करते है। वह तो अपने असली घर सत समुंदर पार पहुंच जाते हैं। ओर जो जीव अपने गुरु का कहना मान कर भजन सिमरन नहीं करता वह भटक जाता है। हम जब भी उस छोटे बेटे की तरह भटके हुए हैं और अपने घर का रास्ता भूले बैठे हैं। इस दुनिया के ऐशो आराम में हम अपने असली घर का पता भुल चुके हैं। हमारा गुरु हमें ढूंढ रहा है और हमें अपने साथ ले जाने के लिए आवाज भी दे रहा है। लेकिन हम जीव उसकी आवाज को अनसुना कर रहे हैं। हम इस दुनिया की ऐशो आराम मै इतने मगन हो गए है कि हमें उसकी आवाज सुनाई ही नहीं देती। हमें चाहिए कि हम अपने गुरु के हुकुम में रह कर, भजन सिमरन करें और अपने निज घर बापिस पहुंच सके। जहां हमारा पिता हमारे स्वागत के लिए द्वार पर हमेशा इंतजार कर रहा है।


        *नहीं राम बिन ठांव*

Radha Soami Sangat ji.

Apko ye babaji ki sakhi kaisi lagi hamein jrur btayen ji.

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Babaji ki sakhi radha soami ji.

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