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Radha Soami Babaji Ki Sakhi । अगर आप सेवादार हैं तो जरूर पढ़ें । सेवादारों के लिए साखी।

💙💙💙💙  राधा स्वामी जी 💙💙💙💙
Agar ap sewadar hai aur satsang beas me ya kahi bhi sewa krte hai to time ho ya na ho ye sakhi jrur padho

आज की ये साखी  सेवादारो को समर्पित हैं ।

✍️एक दिन गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के दरबार में एक मदारी अपने रीछ के साथ प्रस्तुत हुआ,,,मदारी के द्वारा सिखाए गए  करतब रीछ ने संगत के सामने प्रस्तुत करने शुरू किए,, कुछ खेल इतने हास्य से भरपूर थे कि संगत की हसी रोके से ना रुक रही थी,, करतब देख गुरु जी मुस्कुरा रहे थे,,एक सिख के ठहाकों से सारा दरबार गुंजायमान था वो सिख था गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज पर चवर झुलाने की सेवा करने वाला भाई किरतिया.....

भाई किरतिया,,,आप इन करतबों को देख,बड़े आनंदित हो,, गुरु साहब जी ने कहा....,.

महाराज इस रीछ के करतब हैं ही इतने हास्यपूर्ण,,सारी संगत ठहाके लगा रही है,, मुस्कुरा तो आप भी रहें हैं दातार,, भाई किरतिया ने कहा....

हम तो कुदरत के करतब देख कर मुस्कुरा रहे हैं भाई किरतिया

कुदरत के करतब?? कैसे महाराज

भाई किरतिया,,क्या आप जानते हो इस रीछ के रूप में ये जीवात्मा कौन है?

नही दाता,, ये बाते मुझ जैसे साधारण जीव के बस में कहाँ?

भाई किरतिया,,रीछ के रूप में संगत का मनोरंजन करने वाला और कोई नही,,आप का पिता भाई सोभा राम है

भाई किरतिया जी को जैसे एक आघात सा लगा, सर से लेकर पाँव तक सारा शरीर कांप गया, कुछ संभला तो हाथ में पकड़े चवर साहब को गुरुपिता के चरनों में रख दिया और बोलें .....

सारा संसार जानता है,मेरे पिता भाई सोभाराम ने गुरु दरबार की ताउम्र सेवा की,, उन्होंने एक दिन भी गुरुसेवा के बिना व्यतीत नही किया, अगर उन जैसे सेवक की गति ऐसी है तो गुरु जी,, सेवा करने का कोई लाभ नही

भाई किरतिया,,आपके पिता भाई सोभाराम ने गुरुघर में सेवा तो खूब की लेकिन सेवा के साथ स्वयं की हस्ती को नही मिटाया,, अपनी समझ को गुरु विचार से उच्च समझा,, एक दिन हमारा एक सिख अपनी फसल बैलगाड़ी पर लाद कर मण्डी में बेचने जा रहा था,, राह में गुरुद्वारा देख मन में गुरुदर्शन करके कार्य पर जाने की प्रेरणा हुई,, बैलगाड़ी को चलता छोड़,, वो सिख गुरुघर में अंदर आ गया,, गुरबानी का पावन हुक्मनामा चल रहा था,,हुक्म सम्पूर्ण हुआ, भाई सोभाराम ने प्रसाद बाँटना शुरू किया,,

भाई सोभाराम जी, मुझे प्रसाद जरा जल्दी दे दीजिये, मेरे बैल चलते चलते कहीं दूर ना निकल जाएं
सिख ने विनती की....

मेरे सिख के मैले कपड़ो से अपने सफेद कपड़े बचाते हुए तेरे पिता भाई सोभाराम ने कहा अच्छा, अच्छा, थोड़ा परे हो कर बैठ, बारी आने पर देता हूँ

बैलगाड़ी की चिंता, सिख को अधीर कर रही थी, सिख ने दो तीन बार फिर बिनती की तो तेरे पिता भाई सोभाराम ने प्रसाद तो क्या देना था मुख से दुर्वचन दे दिए....

कहा ना, अपनी जगह पर बैठ, समझ नही आती क्या, क्यों रीछ के जैसे उछल उछल कर आगे आ रहा है


तेरे पिता के ये कहे अपशब्द मेरे सिख के साथ साथ,मेरा हृदय भी वेधन कर गए,, सिख की नजर जमीन पर गिरे प्रसाद के एक कण पर पड़ी, उसी कण को गुरुकृपा मान अपने मुख लगा सिख तो अपने गन्तव्य को चला गया लेकिन व्यथित हृदय से ये जरूर कह गया....

सेवादार होना मतलब जो सब जीवों की गुरु नानक जान कर सेवा करे, गुरू नानक जान कर आदर दे, जो सेवा करते वचन कहते सोचे वो वचन गुरु नानक को कह रहा है, प्रभु से किसी की भावना कहाँ छिपी है,, हर कोई अपने कर्म का बीजा खायेगा,,रीछ मैं हूँ या आप,, गुरु पातशाह जाने

सिख तो चला गया,,लेकिन तेरे पिता की सर्व चर्चित सेवा को गुरु नानक साहब ने स्वीकार नही किया,, उसी कर्म की परिणिति तेरा पिता भाई सोभाराम आज रीछ बन कर संसार में लोगो का मनोरंजन करता फिरता है,, इसका उछलना,, कूदना,, लिपटना, आंसू, सब के लिए मनोरंजन है,,

गुरु पिता, मेंरे पिता को इस शरीर से मुक्त कर के अपने चरणों में निवास दीजिये

हम बारिक मुग्ध इयान,, पिता समझावेंगे
मोहे दूजी नाही ठौर, जिस पे हम जावेंगे

हे करुणानिधान, कृपा करें, मेरे पिता की आत्मा को इस रीछ के शरीर से मुक्त करें,,

गुरु जी ने अपने हाथों से रीछ बने भाई सोभाराम  को प्रसाद दिया, भाई सोभाराम ने रीछ का शरीर त्याग, गुरु चरणों में स्थान पाया..,,

गुरु जी से क्षमा मांग, चवर को उठा भाई किरतिया फिर से चवर की सेवा करने लगें  !

 गुरु चरणी चित्त ला बंदया🙏🙇🙏
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