Ticker

6/recent/ticker-posts

कहानी गुरु अर्जन देव जी और राजा की । पिछले जन्म के कर्म। Pichle Janm Ke Karm | Radha soami dera beas sakhi

Radha soami babaji ki sakhi dera beas

एक दिन संध्या के समय श्री गुरु अर्जुन देव जी के दर्शन करने के लिए हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया।

गुरुदरबार में कीर्तन चल रहा था।
रागी शबद गा रहे थे-
------ लेख ना मिटिये हे सखी ------
------ जो लिखेया करतार ------

राजा ने प्रश्न किया- महाराज! अगर किस्मत के लेख मिटते नहीं हैं,
तो संगत करने का क्या लाभ है?

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने कहा- इसका उत्तर आपको समय आने पर देंगें।
अभी आप कुछ आराम कर लीजिये।

राजा रात को सोया तो उसे स्वप्न आया,
कि उसका एक अति दरिद्र परिवार में जन्म हुआ है और उसका जीवन अत्यंत दरिद्रता में बीत रहा है।
वो युवा हुआ, उसका विवाह हुआ और उसे चार संतानें हुईं।
उसके जीवन के चालिस वर्ष बीत चुके हैं।
एक दिन बच्चों की जिद पर वो एक पीलू के वृक्ष पर चढ़कर उनके लिए पीलू तोड़कर नीचे फेंक रहा है और कुछ खुद भी खा रहा है।
एक पके गुच्छे को तोड़ने के लिए वो जैसे ही थोड़ा ऊपर उठा तो उसका पैर फिसल गया,
और वो धड़ाम से नीचे गिर गया।
राजा यकदम उठ बैठा।
भोर हो रही थी और वो दातुन करने लगा,
तो मुंह से एक पीलू का बीज निकला।
राजा आश्चर्यचकित हो गया।

सुबह जब वो गुरु दरबार में आया,
तो श्री गुरू अर्जुन देव जी ने उसे वन विहार करने के लिए चलने को कहा।
और श्री गुरु अर्जुन देव जी और राजा वन के लिए चल पड़े।

रास्ते में उन्हें एक हिरण दिखाई दिया।
हिरण का पीछा करते हुए राजा श्री गुरु अर्जुन देव जी से बिछड़ गया,
और प्यास से व्याकुल होकर जल की तलाश में एक नगर में जा पहुँचा।


कुएं पर पानी भरती औरतों से जब उसने पानी माँगा तो वो भय से चीखने लगीं।
राजा अभी हैरान खड़ा ही था कि कुछ बच्चे उससे आकर लिपट गए।
कुछ बड़े बजुर्ग और एक औरत उसे हैरानी से देख रहे थे।

राजा ने उन्हें थोड़ा गौर से देखा- अरे! ये क्या,
ये तो वही लोग हैं जिन्हें मैंने सपने में अपने कुटुंब के रूप में देखा था।
अरे! ये बच्चे भी वही हैं जो सपने में मेरी संतानें थीं।
पर इनका अस्तित्व कैसे हो सकता है?
राजा अभी ये सोच ही रहा था,
कि सब लोग उसे खींचकर बेटा, बापू और स्वामी कहते हुए लिपट गए।

तभी श्री गुरु अर्जुन देव जी वहां आ गए।
राजा ने श्री गुरु अर्जुन देव जी से खुद को बचाने की गुहार लगाई।

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने उन लोगों से पूछा- आप इन्हें अपने साथ क्यों ले जा रहे हो?

उन्होंने कहा- ये हमारा परिजन है।
इसे ईश्वर ने हमारे लिए वापिस भेजा है।
अभी कल ही ये बच्चों के लिए पीलू तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ा था,
और वृक्ष से गिरने से इसकी मौत हो गई थी।
कुछ और परिजनों के इंतजार में इसका शरीर वैधराज के पास रखा था।
हम उसे ही लेने आज जा रहे थे,
कि ये जीवित होकर हमारे सामने आ गया।

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने कहा- भले लोगों! ये आपका परिजन नहीं है।
आपके परिजन का शरीर वैध के घर में सुरक्षित पड़ा है।

लोग राजा और श्री गुरु अर्जुन देव जी के साथ वैध के घर गए,
और हूबहू राजा से मिलती देह देखकर हैरान रह गए।
उन्होंने राजा से माफी मांगी और उन्हें विदा किया।

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने राजा से कहा- राजन! तुमने कहा था ना कि अगर लिखा मिट नहीं सकता है,
तो सत्संग का क्या लाभ?
आप जो अभी देख के आ रहे हो,
वो आपका आने वाला जन्म था।
जो आपको इस जन्म के कुछ गलत कार्यों के कारण भोगना था।
लेकिन साधू जनों की संगत करने के कारण श्री गुरु नानक देव जी ने आपकी दरिद्रता के चालिस साल,
एक सपने में ही व्यतीत कर दिए।
जिस तरह राजमुद्रा पर अंकित अक्षर उल्टे होते हैं,
लेकिन स्याही का संग मिलते ही वो राजपत्र पर सीधे छपते हैं,
उसी तरह सत्संग का साथ हमारी मलिन बुद्धि को सीधे राह पर डाल देता है।

राजा ये वचन सुनकर,
धन्य श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते हुए उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।

------ तात्पर्य ------
हम भले ही घर पर बैठकर,
चाहे जितना भी भजन-सिमरन कर लें,
पर हमारा नियमित सत्संग किसी भी हालात में नहीं छूटना चाहिए।
नियमित सत्संग में हमें हमारे सत्गुरू जी के, हमारे सत्गुरू जी के द्वारा भेजे गए जीवों के और सत्गुरु जी की संगत के साक्षात दर्शन हो जाते हैं।
नियमित सत्संग से हमें अच्छे मार्ग पर चलने की, अच्छे कर्म करने की और लगातार बिना नागा भजन-सिमरन करने की प्रेरणा मिलती है।

🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


Post a Comment

0 Comments