कीर्तन और सत्संग मे जाने से फ़ायदा ही फ़ायदा होता है।कभी नुकसान नही होता।एक अँधा फूलों के बाग में चला जाता है,
अगर वह फूलों की खूबसूरती को नही देख सकता तो फूलों की सुगंध तो जरुर ले ही जायगा।
जैसे एक पत्थर पानी में डूबा दो चाहे पिघलता नहीं पर कम से कम सूरज की तपिश से तो बचा रहता है।
इसी प्रकार अगर हम सत्संग में जा कर नाम की कमाई करते हैं तो सोने पे सुहागा है नही भी करते तो भी कम से कम बुरी संगत से तो बचे रहते हैं।
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सत्संग वह आईना है।जहाँ पर सत्संगी अपने अवगुणों को देख कर सुधारने की कोशिश करता है।
और उसकी कोशिश ही उसे एक दिन गुरमुख बना देती है।हमारा खुद का सुधरना भी किसी सेवा से कम नहीं है।ये भी एक बन्दगी है।
- महाराज चरण सिंह जी
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Radha Swamiji. Mere Sat guru.
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